Indus Water Treaty: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम इलाके में सोमवार को हुए भीषण आतंकी हमले ने न केवल क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को चिंताजनक बना दिया है, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty – IWT) पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत हो गई और अनेक घायल हो गए, जिसके बाद सेना और सुरक्षा बलों ने पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छापेमारी अभियान शुरू कर दिया है।
हमले की पृष्ठभूमि और आरोप-प्रत्यारोप
आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) के प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह हमला पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन The Resistance Front (TRF) के सदस्यों ने अंजाम दिया है। हमलावरों ने भीड़भाड़ वाले पर्यटन स्थल पर ग्रेनेड फेंके और अंधाधुंध गोलियां चलाईं। भारत सरकार ने सीधे तौर पर पाकिस्तान पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह हमला पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा प्रायोजित था।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक कड़े बयान में कहा, “पाकिस्तान की धरती से हो रहे आतंकवाद को लेकर भारत अब और सहनशीलता नहीं दिखाएगा। हम सभी संभव विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।”
Indus Water Treaty: क्या है पूरा मामला?
सिंधु जल समझौता (IWT) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक ऐतिहासिक समझौता है, जो सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों (झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, सतलज) के जल बंटवारे को नियंत्रित करता है। इसके तहत:
- पश्चिमी नदियाँ (झेलम, चेनाब, सिंधु): पाकिस्तान को 80% से अधिक जल अधिकार मिला।
- पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलज): भारत को पूर्ण उपयोग का अधिकार।
हालांकि, समझौते में यह प्रावधान भी है कि भारत पश्चिमी नदियों के जल का सीमित उपयोग (बिजली उत्पादन, सिंचाई) कर सकता है, लेकिन पाकिस्तान की सहमति के बिना बड़े बांध नहीं बना सकता।
पहलगाम हमले के बाद समझौते पर खतरा?
2016 के उरी हमले के बाद भारत ने Indus Water Treaty की समीक्षा की थी और “रक्त और पानी साथ नहीं बह सकते” का नारा दिया था। उस समय भारत ने पाकिस्तान को जाने वाली नदियों पर कई जलविद्युत परियोजनाएँ शुरू की थीं, जिससे पाकिस्तान में जल संकट की आशंका पैदा हुई थी।
इस बार भी सरकार के भीतर से संकेत मिल रहे हैं कि भारत समझौते के कुछ प्रावधानों को निलंबित कर सकता है। संभावित कदमों में शामिल हो सकते हैं:
- पश्चिमी नदियों पर अधिक बांधों का निर्माण
- पाकिस्तान को जाने वाले जल की मात्रा में कटौती
- समझौते से आंशिक या पूर्ण रूप से हटने की प्रक्रिया शुरू करना
विशेषज्ञों की राय: क्या हैं जोखिम?
- जल विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु ठक्कर का कहना है कि “समझौता तोड़ना भारत के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता प्रभावित होगी।”
- रक्षा विश्लेषक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) एच.एस. पनाग मानते हैं कि “पाकिस्तान को सीधे सैन्य कार्रवाई के बजाय जल समझौते का इस्तेमाल एक रणनीतिक हथियार के रूप में किया जा सकता है।”
पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने हमले से इनकार करते हुए भारत पर “बिना सबूत आरोप लगाने” का आरोप लगाया है। उधर, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने हमले की निंदा की है, लेकिन सिंधु समझौते को लेकर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
आगे की राह
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय, जल शक्ति मंत्रालय और गृह मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय बैठक जल्द ही होने वाली है, जिसमें पाकिस्तान पर दबाव बनाने के विकल्पों पर चर्चा होगी। संभावना है कि भारत पहले कूटनीतिक और आर्थिक कार्रवाई करेगा, लेकिन यदि पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाता, तो सिंधु समझौते को भी प्रभावित किया जा सकता है।
(अतिरिक्त जानकारी: विश्व बैंक ने 2016-17 में भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल विवाद में मध्यस्थता की थी, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है।)