Pahalgam Terror Attack: जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहल्गाम में रविवार को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस निर्मम हमले में आतंकवादियों ने पर्यटकों को निशाना बनाया और कथित तौर पर धर्म के आधार पर पहचान कर हत्या की। इस पूरे घटना में ‘कलमा’ Kalma का जिक्र आया, जिसे कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए पढ़ा।
हमले के प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकियों ने पर्यटकों को घेर लिया और उनसे ‘कलमा’ पढ़ने को कहा। जो व्यक्ति ‘Kalma‘ (इस्लामिक आस्था का प्रमुख घोषणापत्र) सही ढंग से पढ़ने में असमर्थ थे, उन्हें निशाना बनाया गया। यह घटना बायसरन घाटी के घने जंगलों में घटी, जहाँ देशभर से आए सैकड़ों पर्यटक घूमने आए थे।
‘Kalma‘ ने बचाई जान
असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य, जो घटना के समय वहीं मौजूद थे, ने अपनी आपबीती साझा करते हुए बताया कि जब गोलियों की आवाज़ गूंजने लगी और लोग भागने लगे, तब उन्होंने सुना कि कुछ लोग ‘Kalma‘ पढ़ रहे हैं। स्थिति को भांपते हुए देबाशीष ने भी बिना देर किए ‘कलमा’ पढ़ना शुरू कर दिया।
उनका कहना है, “मैंने तुरंत उन लोगों की नकल की जो ‘लाइला-हाइल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ पढ़ रहे थे। मैं जानता था कि मैं मुसलमान नहीं हूं, लेकिन उस समय जान बचाना सबसे जरूरी था।“
देबाशीष ने कहा कि आतंकियों ने हर किसी से सीधे सवाल नहीं पूछा, लेकिन उनकी रणनीति थी कि जो मुस्लिम प्रतीत होते हैं या जो ‘कलमा’ पढ़ते हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए। उनकी त्वरित सूझबूझ और साहस ने उनकी जान बचाई।

हमला कैसे हुआ?
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, आतंकवादी पहाड़ों से अचानक नीचे आए और गोलियों की बौछार शुरू कर दी। पर्यटकों के वाहन और घोड़े भी हमले की चपेट में आ गए। कुछ स्थानीय गाइड्स ने पर्यटकों को बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी गोली लगने की खबरें आईं। हमले में कई निर्दोष पर्यटकों की मौत हुई और दर्जनों घायल हो गए।
हमले के बाद सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इलाके को घेर लिया और सर्च ऑपरेशन शुरू किया। प्रारंभिक रिपोर्टों में बताया गया कि आतंकवादी संभवतः एक स्थानीय आतंकी संगठन से जुड़े थे और इस हमले को धार्मिक विभाजन फैलाने के उद्देश्य से अंजाम दिया गया।
धार्मिक पहचान के नाम पर हिंसा
इस हमले ने एक बार फिर से आतंकवाद के उस भयानक चेहरे को उजागर कर दिया है, जहाँ निर्दोष लोगों को उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया जाता है। ‘Kalma‘ — जो इस्लाम में ईश्वर की एकता और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पैगंबरी को स्वीकार करने का प्रतीक है — को आतंकियों ने पहचान का औजार बना दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ न केवल अमानवीय हैं बल्कि क्षेत्रीय शांति और भाईचारे को भी खतरे में डालती हैं। धार्मिक भावनाओं का ऐसा दुरुपयोग आतंकवादियों के गिरे हुए स्तर को दर्शाता है।
सरकार और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया
हमले के तुरंत बाद केंद्र और राज्य सरकार ने इस कायराना हरकत की निंदा की। गृहमंत्री ने बयान जारी कर कहा, “देश के नागरिकों पर इस तरह का हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।“
सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर क्षेत्र में सघन तलाशी अभियान चलाया। दो संदिग्ध आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराने की भी खबरें आई हैं। सुरक्षाबलों ने यह भी आश्वासन दिया कि जो भी हमले में शामिल होगा, उसे कानून के अनुसार कड़ी सजा दी जाएगी।
पीड़ितों के लिए सहायता
सरकार ने मृतकों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने और घायलों का मुफ्त इलाज कराने की घोषणा की है। साथ ही स्थानीय प्रशासन ने पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित करते हुए सुरक्षा कड़ी कर दी है।
कलमा क्या है?
Kalma (या कलिमा) इस्लाम में आस्था की घोषणा है। यह एक ऐसा मूल वाक्य है जिसे हर मुसलमान दिल से मानता और बार-बार पढ़ता है। इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से सबसे महत्वपूर्ण है “कलमा तैय्यब” (शुद्ध घोषणा)।
इस्लाम में छह कलमे
दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि) में परंपरागत रूप से छह कलमों को पढ़ाया जाता है, जिनमें विभिन्न प्रकार की आस्थाएँ और प्रार्थनाएँ सम्मिलित हैं।
हालांकि, जब सामान्यतः “कलमा” कहा जाता है तो अधिकतर लोग पहले कलमे (कलमा तैय्यब) की ही बात करते हैं।
1. पहला कलमा — कलमा तैय्यब (Kalima Tayyib)
“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह”
(लाअल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।)
अर्थ:
“अल्लाह के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के पैगंबर हैं।”
2. दूसरा कलमा — कलमा शहादत (Kalima Shahadat)
“अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीक लहू, व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दूहू व रसूलुहू”
अर्थ:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उनके बंदे और रसूल हैं।”
3. तीसरा कलमा — कलमा तम्जीद (Kalima Tamjeed)
“सुब्हानल्लाहि वल हम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर। वला हवला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम।”
अर्थ:
“अल्लाह पाक है, सारी तारीफ अल्लाह के लिए है, अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है। ताकत और कुव्वत सिर्फ अल्लाह महान और सर्वोच्च के पास है।”
4. चौथा कलमा — कलमा तौहीद (Kalima Tawheed)
“ला इलाहा इल्लल्लाहु वःदहू ला शरीक लहू, लहूल मुल्कु वलहुल हम्दु युहयि व युमीतु व हुवा हय्युं ला यमूतु अबदा, जल्ल जलालुहू व तबरक अस्मुहू व तआला जद्दुहू वला इलाहा ग़ैरुहू।”
अर्थ:
“अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं। उसी के लिए राज्य और सारी प्रशंसा है। वही जीवन देता है और वही मृत्यु देता है, वह हमेशा जीवित है और कभी नहीं मरेगा। उसकी महिमा महान है, उसका नाम बरकत वाला है और उसका गुण ऊँचा है, और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।”
5. पाँचवां कलमा — कलमा इस्तिग़फार (Kalima Istighfar)
“अस्तग़फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़म्बिंन अज़नब्तुहू अमदन अव ख़ता अन सिर्रन अव अलानियतन व अतुबु इलैहि मिनज़ ज़म्बिल्लज़ी आ’लमु व मिनज़ ज़म्बिल्लज़ी ला आ’लमु, इन्नका अंता अल्लामुल ग़यूबि व सत्तारुल उयूबी व गफ्फारुज़ ज़नूबि व ला हवला व ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अज़ीम।”
अर्थ:
“मैं अल्लाह से अपने हर गुनाह की माफी माँगता हूँ, जिसे मैंने जान-बूझकर या अनजाने में, गुप्त या खुले तौर पर किया हो। और मैं उसकी ओर तौबा करता हूँ उन गुनाहों से जिन्हें मैं जानता हूँ और उन गुनाहों से जिन्हें मैं नहीं जानता। बेशक, तू ही छिपी बातों को जानने वाला है, और तू ही दोषों को छुपाने वाला और गुनाहों को माफ करने वाला है। ताकत और शक्ति केवल अल्लाह महान और सर्वोच्च के पास है।”
6. छठा कलमा — कलमा रद्दे कुफ्र (Kalima Radde Kufr)
“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ु बिका मिन अन उशरिक बिका शयअन व अनाअलमु बिही व अस्तग़फिरुका लिमा ला आ’लमु बिही, तुब्तु अन्हु व तबर्रअतु मिनल कुफ़्रि वश्शिर्कि वल किज्बि वल ग़ीबति वल बिदअति वन्नमीमति वल फवाइह़ि वल बूह्तानि वल मअास़ी कुल्लिहा व असलमु व आऊमिनु व अक़ूलु ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।”
अर्थ:
“हे अल्लाह! मैं तुझ से उस चीज़ से पनाह माँगता हूँ कि मैं जानबूझकर तेरा कोई साझी ठहराऊँ, और मैं तुझ से उस गुनाह की भी माफी चाहता हूँ जिसे मैं नहीं जानता। मैं उन सब बुराइयों से तौबा करता हूँ — कुफ्र (नास्तिकता), शिर्क (अनेकेश्वरवाद), झूठ, चुगली, बिदअत (धर्म में नवाचार), निंदा, और सारे पापों से। मैं इस्लाम को अपनाता हूँ और इस पर ईमान लाता हूँ और यह स्वीकार करता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।”
निष्कर्ष
पहल्गाम हमला एक दुखद याद दिलाता है कि कैसे आतंकवादियों ने धार्मिक प्रतीकों और विश्वासों को विकृत कर, निर्दोष लोगों को निशाना बनाया। देबाशीष भट्टाचार्य जैसे साहसी जीवित बचे लोगों की गवाही इस त्रासदी के भयावह स्वरूप को सामने लाती है। इस घटना ने पूरे देश को एक बार फिर से एकजुट कर दिया है — आतंक और नफरत के खिलाफ।